काबुल शाही राजवंश के शासन में मंदिर स्थापत्य कला का विश्लेषण (700-1000 ईस्वी)
DOI:
https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i10.86Abstract
काबुल शाही राजवंश का शासन 7वीं से 10वीं शताब्दी के दौरान वर्तमान अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत (आधुनिक पाकिस्तान) के क्षेत्रों में फैला था। इस काल में हिंदू और बौद्ध धर्म के प्रभाव में विशिष्ट मंदिर स्थापत्य कला का विकास हुआ। काबुल शाही शासकों ने कला और संस्कृति को संरक्षण दिया, जिसका प्रमाण उनके द्वारा निर्मित मंदिरों से मिलता है। इस काल के प्रमुख मंदिरों में गंधार क्षेत्र (वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान) के मंदिर महत्वपूर्ण हैं। शाही राजवंश के अंतर्गत निर्मित मंदिरों में नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रित प्रभाव देखा जा सकता है। पत्थर की नक्काशी, जटिल भित्ति चित्र और मूर्तिकला इन मंदिरों की विशेषता थी। विशेष रूप से, स्वात घाटी के मंदिर और काबुल क्षेत्र के मंदिर इस काल की स्थापत्य विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। काबुल शाही काल के दौरान मंदिरों में शिखर, मंडप और गर्भगृह का विशेष महत्व था। इन मंदिरों की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्रण और बौद्ध प्रतीकों का समावेश मिलता है, जो धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है। शिव, विष्णु और सूर्य जैसे देवताओं की प्रतिमाएँ इन मंदिरों में विशेष स्थान रखती थीं। 10वीं शताब्दी के अंत में इस्लामिक आक्रमणों के कारण इस क्षेत्र के अधिकांश मंदिर नष्ट हो गए, लेकिन जो अवशेष बचे हैं, वे काबुल शाही राजवंश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कलात्मक उत्कृष्टता के प्रमाण हैं।
मूल शब्द - गंधार, नागर शैली, द्रविड़ शैली, शिखर, मंडप, गर्भगृह, स्वात घाटी, हिंदू-बौद्ध प्रभाव, पत्थर की नक्काशी, भित्ति चित्र, मूर्तिकला, धार्मिक सहिष्णुता, स्थापत्य कला।
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