नागार्जुन के काव्य में प्रगतिशील चेतना

Authors

  • प्रो. अरविंद कुमार विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह डिग्री कॉलेज हैंवरा, इटावा Author

DOI:

https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i6.77

Keywords:

नागार्जुन, समाज-सुधार, क्रांतिकारी विचारधारा, सामाजिक न्याय, हिन्दी साहित्य

Abstract

भारतीय साहित्य में समाज-सुधार और क्रांतिकारी विचारधारा का अभिव्यक्ति अनेक कवियों और लेखकों ने की है। इन विचारधाराओं का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त असमानता, शोषण, अंधविश्वास और अराजकता के विरुद्ध संघर्ष करना और समाज में नई चेतना का संचार करना है। ऐसे ही एक महान लेखक हैं नागार्जुन। नागार्जुन का जन्म 4 मई 1911 को बिहार के सिमरिया में हुआ था। उनका वास्तविक नाम वैद्य नाथ मिस्र था। वे हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता, श्रमजीवी वर्ग की चिंता, और सामाजिक बदलाव को अपने कवि कर्म का आधार बनाया।

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Published

2024-06-30

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How to Cite

नागार्जुन के काव्य में प्रगतिशील चेतना. (2024). International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology, 2(6), 49-52. https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i6.77