भारतीय सामाजिक परिवर्तन में सावित्रीबाई फुले के अथक प्रयासों का विश्लेषण
DOI:
https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i6.65Keywords:
सावित्रीबाई फुले, स्त्री शिक्षा, दलित चेतना, सामाजिक न्यायAbstract
उन्नीसवीं शताब्दी के भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक पुर्नजागरण की भूमि तैयार करने में जिन सुधारकों का नाम आता है, उनमें फुले दम्पत्ति का उल्लेख समीचीन हो जाता है, क्योंकि उस सदी में भारत में जिन सुधारों की आवश्यकता थी, उसको इस दम्पत्ति ने संवेदना के धरातल पर अपने सक्रियतावाद से सम्भव बनाया। उनके सक्रियतावाद में ज्ञान की वैचारिकी के साथ ही जमीनी स्तर पर कार्य करना था, जिसको आगे लेकर चलने में सावित्रीबाई फुले का अक्षुण्ण योगदान था। उन्होंने स्त्री जीवन की कठिनाईयों में प्रत्येक पहलू को अपनी प्रखरता एवं असाध्य श्रम से सुधारने की कोशिश की, जिसमें स्त्रियों को शिक्षित करने से लेकर विधवा-विवाह, दलित स्त्रियों को आश्रय देना, शिशु आश्रय गृह एवं स्त्री केशमुंडन जैसी परम्पराओं का विरोध करना सम्मिलित था। वह अपने समय की प्रथम स्त्रीवादी, प्रथम शिक्षिका एवं समाज सुधारिका थीं, जिन्हें इतिहास के पन्नों पर समुचित स्थान प्राप्त न हो सका। प्रस्तुत लेख उनके द्वारा किये गये भागीरथ प्रयासों के बारे में एक विमर्श की शुरुआत भर है।
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