सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका

Authors

  • डॉ० प्रमोद कुमार सिंह शोध निर्देशक, एसो० प्रोफेसर-समाजशास्त्र, के.एन.आई.पी.एस.एस. सुलतानपुर Author
  • एकता सिंह शोधार्थिनी-समाजशास्त्र, डॉ.रा.म.लो. अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या, उ.प्र. Author

DOI:

https://doi.org/10.61778/ijmrast.v2i2.40

Keywords:

शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन, शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन में बाधाएँ, सतत शिक्षा और निष्कर्ष

Abstract

भारतीय समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, छुआछूत, भेदभाव, ऊँचनीच, जाति-पांति आदि अशिक्षा की ही देन है। आलस्य प्रमाद, अकर्मण्यता, निराशा, निरुत्साह तथा आवेग, अवज्ञा आदि मानसिक विकारों की जननी भी निरक्षरता ही है। कदाचित् हीे कोई दुर्गुण, दुव्यसन अथवा दुष्कृत्यता होगी जिसको निरक्षरता ने जन्म न दिया हो। धर्म का ठीक -ठीक स्वरूप न समझे अशिक्षित व्यक्ति जाने कितने देवी-देवताओं, भूत-पलीतों और मियाँ- मसानों की पूजा करते है। अशिक्षित नारियाँ तो इन अन्धविश्वासों की इतनी वंदिनी हो जाती है कि प्रपंची लोगों के बहकावे में आकर शील-सम्पत्ति तक गवाँ बैठती है। महामना मुनियों की संतान एवं सनातन ज्ञान के आधिकारी भारतवासी आज इस प्रकार अज्ञान में डूबे हैं कि उनमें और अन्य जीवों में कोई भेद नहीं रह गया है। गन्दगी, अश्लीलता, आचरण- हीनता, दुराचार, भ्रष्टाचार आदि के अवगुण उनके समाज व स्वभाव के अंग बन गये हैं। आदर्श जीवन क्या है, मानवता किसे कहते हैं, राष्ट्रीयता का स्वरुप क्या होता है, सामाजिक जीवन की मान्यताएँ क्या हैं, इनमें से आज कितने भारतीय परिचित है? अज्ञान का यह अन्धकार इस आर्ध और आर्षभूमि पर भयानक कलंक है। इसके मूल में अशिक्षा है। अतः समाज और व्यक्ति में परिवर्तन लाने हेतु शिक्षा को मजबूत और सार्थक करने की आवश्यकता है।

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Published

2024-02-27