भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्वः चुनौतियाँ, संभावनाएँ और समाधान
DOI:
https://doi.org/10.61778/ijmrast.v3i8.165Keywords:
महिला नेतृत्व, भारतीय राजनीति, आरक्षण, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व, लैंगिक समानता।Abstract
भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्व केवल प्रतिनिधित्व या संख्या की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह लोकतंत्र की गुणवत्ता, सामाजिक न्याय और लिंग समानता की वास्तविक कसौटी है। भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 14, 15 और 16 के माध्यम से महिलाओं को समानता और समान अवसर का अधिकार प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त, 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1993) के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया गया। परिणामस्वरूप स्थानीय स्तर पर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और आज लगभग 14 लाख से अधिक महिलाएँ पंचायती संस्थाओं में निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय हैं।
फिर भी, राष्ट्रीय और राज्य स्तर की राजनीति में स्थिति उत्साहजनक नहीं है। 17वीं लोकसभा (2019) में महिलाओं की संख्या 78 रही, जो कुल सदस्यों का मात्र 14.3 प्रतिशत है। राज्य विधानसभाओं में औसतन 9 प्रतिशत महिलाएँ ही सदस्य हैं। यह आँकड़े दर्शाते हैं कि जनसंख्या में 48 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली महिलाओं को राजनीति में अब भी समान अवसर नहीं मिला है। इसके पीछे अनेक चुनौतियाँ हैं पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना, आर्थिक संसाधनों की कमी, चुनावी प्रक्रिया की जटिलता, राजनीतिक दलों की टिकट वितरण नीति, तथा राजनीति में असुरक्षा और नकारात्मक प्रचार जैसी समस्याएँ।
प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्व की वर्तमान स्थिति, उससे जुड़ी चुनौतियों, उपलब्ध अवसरों तथा संभावित समाधानों का सम्यक् विश्लेषण करना है। अध्ययन के अंतर्गत आँकड़ों, विद्वानों के विचारों, सरकारी रिपोर्टों तथा पूर्ववर्ती शोध कार्यों का संदर्भ लिया गया है। शोध यह तर्क प्रस्तुत करता है कि महिला नेतृत्व लोकतंत्र में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और संवेदनशीलता को सुदृढ़ करता है। अतः यदि महिलाओं को राजनीतिक दलों से पर्याप्त टिकट, चुनावी खर्च हेतु आर्थिक सहयोग, और सुरक्षित-सम्मानजनक वातावरण प्रदान किया जाए तो वे राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
यह अध्ययन इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना केवल लैंगिक न्याय का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र को अधिक समावेशी, उत्तरदायी और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक अनिवार्य कदम है।
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