भारतीय ज्ञान परम्परा के विकास में गुरु गोबिंद सिंह जी के विद्या दरबार का प्रदेय

Authors

  • डॉ. नरेश कुमार एसोसिएट प्रोफेसर व अध्यक्ष, पंजाबी एवं डोगरी विभाग, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला Author
  • डॉ. प्रीति सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला Author

DOI:

https://doi.org/10.61778/ijmrast.v3i1.107

Keywords:

गुरु गोबिंद सिंह, विद्या दरबार, भारतीय ज्ञान परम्परा, 52 कवि, विद्याधर

Abstract

भारतीय ज्ञान परम्परा सहस्राब्दियों से चली आ रही वह सतत बौद्धिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जिसके मूल में लोक और शास्त्र का अद्वितीय समन्वय रहा है। यह परम्परा केवल ज्ञानार्जन की साधना नहीं, अपितु यह जीवन के समग्र अनुशीलन की प्रक्रिया है। इस दीर्घ यात्रा में विभिन्न युगों में अनेक मनीषियों, संतों, आचार्यों एवं गुरुओं ने अपने विशिष्ट योगदान से इस परम्परा को समृद्ध करने का कार्य किया। उसी प्रकार दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का विद्या दरबार भारतीय ज्ञान परम्परा के पुनरुत्थान का एक सशक्त केन्द्र बनकर उदित हुआ। गुरु गोबिंद सिंह जी के विद्या दरबार की स्थापना केवल एक धार्मिक कार्य नहीं, अपितु यह भारतीय बौद्धिक चेतना को पुनः जागृत करने का प्रयास था। गुरु जी ने उस कालखण्ड में जब ज्ञान के स्रोत विस्मृत हो रहे और धर्म-संस्कार बाह्याचारों में बंधने लगे थे, तब अपने विद्या दरबार के माध्यम से भारतीय ज्ञान परम्परा की गरिमा को पुनः प्रतिष्ठित किया। यह दरबार ज्ञान का एक ऐसा केंद्र था, जहाँ वेद, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य, नीति-साहित्य, योग-दर्शन, न्याय-विचार और भक्ति-आन्दोलन की परम्पराएँ एक साथ संगठित होती थीं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं अनेक भाषाओं में काव्य रचना की और अपने दरबारी कवियों को भी ज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु प्रेरित किया। संस्कृत, ब्रज, फारसी, पंजाबी, हिंदी और अरबी जैसी भाषाएँ उनके दरबार में ज्ञान-प्रवाह की वाहिका बनकर प्रस्तुत होती थीं। इस प्रकार उनका दरबार एक सांस्कृतिक संगम था, जहाँ भाषाओं, विचारों, परम्पराओं और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों में कोई भेद नहीं था, बल्कि समरसता और सह-अस्तित्व की भावना प्रमुख थी। गुरु गोबिंद सिंह जी का विद्या दरबार भारतीय ज्ञान परंपरा के लोकमंगलकारी एवं समावेशी स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारतीय परंपरा की उस उदारता का प्रतीक है, जो ज्ञान को केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं रखती, अपितु उसे जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभूत करती है।

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Published

2025-01-30

How to Cite

भारतीय ज्ञान परम्परा के विकास में गुरु गोबिंद सिंह जी के विद्या दरबार का प्रदेय. (2025). International Journal of Multidisciplinary Research in Arts, Science and Technology, 3(1), 35-44. https://doi.org/10.61778/ijmrast.v3i1.107